भारतीय लोकतंत्र के इतिहास के पृष्ठों से गुजरते हुये गर्व की अनुभूति होती है कि स्वतंत्रता आंदोलन में पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक शहीद होने वाले रणबांकुरों में सर्वाधिक प्रतिशत राजपूतों का रहा।शौर्य और विश्वास के प्रतीक रूप में इस वर्ग के लोग आज भी देश सेवा हेतु भारतीय सेना में सेवारत हैं।इनके नाम पर राजपूत रेजिमेंट गठित है।
सारे केंद्रीय मंत्री सत्ता की मलाई अपने बेटे बेटियों के लिये सुरक्षित रख जातिवादी भोंपू तो आजीवन बजाते रहना चाहते हैं लेकिन प्राणों की आहुति देने वाली सेवाओं में पड़ोसी के बच्चे को देखना चाहते हैं।इतिहास गवाह है कि स्वतंत्रता प्राप्ति से अब तक किसी भी मंत्री या नेता का बेटा सीमा पर शहीद नहीं हुआ।उसका कार्य जमीन कब्जा,ठेकेदारी,हत्या,बलात्कार आदि तो हो सकता है लेकिन देश सेवा के नाम पर उसे सदन की कुर्सी चाहिये।
शौर्य,पराक्रम,साहस,निष्ठा जैसे तत्वों को रगों में घुलाये राजपूतों का अब तक सिर्फ इस्तेमाल किया गया है।
कांग्रेस के जमाने में इंदिरा और संजय गांधी का चप्पल उठाया,जनता पार्टी में हाशिये पर खड़े होकर जिन्दाबाद किया,भाजपा में बहुमत की सरकार के बावजूद नेतृत्व करने की बजाय झोला ढोने का कार्य जारी है।
प्रदेश की राजनीति में मौजूदा मुख्यमंत्री के कई बार राजपूत कुल में जन्म लेने पर गर्वानुभूति करने को केंद्र ने कायदे से सुना।राजपूत के चेहरे पर चुनाव लड़ा गया।योगी,सन्यासी,राजनेता से भी ऊपर मुख्यमंत्री को ठाकुरवादी उपाधि से अलंकृत किया गया फिर भी नेतृत्व के चेहरे पर बहुमत हासिल किया गया।प्रचण्ड जनादेश के बाद क्रेडिट प्रधान सेवक की झोली में।प्रादेशिक चुनावों में मिले बहुमत दल के नेता को आका के सम्मुख चिरौरी की मुद्रा में देखा गया।उसे अपनी कैबिनेट के गठन की स्वतंत्रता भी नहीं दी गयी।शपथ ग्रहण करने वाले मंत्रियों की लिस्ट दिल्ली ने तैयार की।
स्पष्ट जनादेश पाये सदस्य मंत्रिमंडल से बाहर रहे।दो या अधिक बार जीतकर सदन पंहुचे सदस्य भी मंत्री नहीं बने।जनता द्वारा नकारे गये व जनादेश से खारिज किया गया चेहरा उप मुख्यमंत्री बन कृपा हेतु कृतज्ञता ज्ञापित करता है।किसी भी कक्षा में फेल विद्यार्थी को अगली कक्षा में जब प्रथम पंक्ति में बैठाया जाय तो उस प्रधानाचार्य के विवेक पर हंसी आती है जिसने उसे बैठाने का निर्णय लिया और तरस आता है उस विद्यार्थी के जमीर पर जो परीक्षा में मेहनत के बल पर उत्तीर्ण छात्रों के बीच बैठकर अपनी असफलता पर अट्टहास करता है।खैर....राजपूतों के लिये कुर्सी नहीं बनी है।कुर्सी छीनने की ताकत रखने वाले राजपूत अब अपनी विवेकहीनता के चलते कुर्सी झाड़ने पोंछने में लगे हैं।
राज्य मंत्रियों को शपथ की गरिमा के प्रतिकूल एक साथ कई लोगों को इमला पढ़वाया गया।उन्हें मिले स्पष्ट जनादेश के बावजूद कृपा पात्र की मुद्रा में शपथ की औपचारिकता निर्वहन हेतु बाध्य किया गया।अब तक की शपथ ग्रहण की परंपरा को दरकिनार कर जिस तरह से राज्य मंत्रियों ने सामूहिक इमला पढ़ा वह नितांत हास्यास्पद है।
मतों और जातियों के प्रतिनिधित्व का ध्यान रखने की बजाय उपकृत किये गये दलीय भक्तों को अधिक तवज्जो मिली।
राजपूतों को कैबिनेट में जगह इसलिये भी नहीं दी गयी कि राजपूत कुल में जन्म लेने पर गर्व करने वाले मुख्यमंत्री जातिवादी आरोप से सुरक्सित रहें।
हर दल में इस्तेमाल होने वाले राजपूत अब पांच वर्ष अपने घरों में बैठ कर कश्मीर फाइल्स फ़िल्म देखें अथवा जरूरत पड़ने पर सदन के बाहर नारा लगाएं- 2022 ने ललकारा है,2024 हमारा है।
शाम को दारू और मुर्गे की बांग की प्रतीक्षा में राजपूत कुल के उन कुलदीपकों को साष्टांग अभिवादन जिन्हें जीवन भर सिर्फ झंडा ही ढोना है।
अंजनीकुमार सिंह
अवध (उ. प्र.)