वह लिखनी अब भी बाकी है,
सांसों की माला के मोती
कुछ लम्हे जुड़ने बाकी हैं।
बाकी है कुछ अहसासों की
अरमानों की बातें लिखना,
मन के तहखाने में रखें
जज़्बातों की बातें लिखना,
कुछ शब्द ज़ुबाँ पर आ न सके
कुछ कहना-सुनना बाकी है।।
कविता जो लिखी नहीं अब तक..
कुछ भाव अनछुए छिपे रहे,
उनको स्वर देना बाकी है,
जो अकथ कहानी बनी रही
वह गाथा कहनी बाकी है।
जो कविता लिखी नहीं अब तक
वह लिखनी अब भी बाकी है।।
©© डॉ0 श्वेता सिंह गौर, हरदोई