कुछ बदल गया कुछ वही पुराना हुआ।
कई चेहरे जाने पहचाने लगे,
उम्र की सिलवटों तले पुराने लगे।
कई नये लोगों से भी मिलना हुआ,
नये-नये रिश्तों का भी जुड़ना हुआ।
माँ की याद बहुत ज़्यादा आई,
जब गले लगकर रोने लगीं ताई।
हमारा घर अब बहुत ही पुराना हो चुका है,
चहलकदमी थी जहाँ आज वीराना हो चुका है।
वीरान कमरे,दीवारों पर सिमटी बचपन की यादें,
आँखों के सामने आ गयी वो प्यारी बातें।
खेत खलिहानों को चूमकर झूमती हवायें,
मंदिर तक जाती पगडंडियां मुझे बुलाये।
अब मेरे गाँव में थोड़ी आधुनिकता आ गयी है,
बिजली,टीवी,शिक्षा की जागरूकता आ गई है।
चौपालों पर आज भी सब एकजुट हो बतियाते हैं,
मोबाइल है पर लोग एक दूसरे से बातें करने जाते हैं।
सामने वाली बूढ़ी काकी शरबत लेकर आई थीं,
अपने हाथों से शरबत पिला पूर्ण संतुष्ट हो पाई थीं।
सच,कितना अपनापन है आज भी गाँव में,
शहरों में वो बात कहाँ जो बात है पीपल छाँव में।
रीमा सिन्हा
लखनऊ-उत्तर प्रदेश