"बचपन की यादें..."

कोई लौटा दे मेरा वो बीते दिन वो बचपन की यादें ।

कागज़ के नाव मिट्टी के घरौदें सच्ची की कसमे वादे ।।


स्कूल जाने से पहले मां से रोज गाय छाप दस्सी लेना ।

सीना तानकर दोस्तों के साथ बरफ झालमुड़ी  खाना ।।


मां की आंचल कभी उंगली पकड़ घूमना हाट बाजार ।

मेरी पसंद की सारी फरमाइश पूरी करती मां बाहें पसार ।।


जब जब पिताजी के साथ चला ईट से बनी वे सड़कों पे ।

तब तब ठेस लगती पैर के अंगूठा रक्त बहती सड़कों पे ।।


डांटते हुए कहते चलना सीखो पैर उठाकर चलो हमेशा ।

जब भी जीवन में गिरता हूं ये नसीहतें याद आती सदा ।।


लड़की के पीछे चलना कटी हुई पतंग के पीछे भागना ।

गलतियों पे पिताजी डंडा लेकर दौड़ना मेरा  भागना ।।


छठ के पर्व पर चारों भाइयों के एक जैसा पैंट कमीज ।

लड़ना झगड़ना रूठ जाना बचपन के ये हसीन  तमीज ।।


स्वरचित एवं मौलिक

मनोज शाह 'मानस'

डी-27, सुदर्शन पार्क,

मो.नं.7982510985

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