स्त्री की यह छवि सचमुच लुभाती है क्योंकि यह वही स्त्री है जो कल तक जिस जमीन पर वह खड़ी है उसको अपना कहने का अधिकार भी उसके पास नहीं था । आज वह कमर कसे हुये अपने अधिकारों के लिये पर आज इस लड़ाई को लोग उसका " भटकाव " व " उदण्डता" कह रहे हैं।
समाज स्त्री को कमजोर क्यों समझता है स्त्री कभी कमजोर नहीं थी कैकयी ने घोड़ो की लगाम पकड़ कर युद्ध क्षेत्र में राजा दशरथ के प्राण बचाये पर लोगों ने उस बात को याद नहीं रखा बस राम को वनवास दिलाने का आरोपी माना । मां सीता की अग्नि परीक्षा के बाद भी भगवान राम उनको अपने पास नहीं रख पाये । द्रौपदी क्या कोई निर्जीव वस्तु थी जिसे जुये में लगा दिया गया ।
आज भी बहुत अधिक बदलाव नहीं है। आज भी परिस्थितियों में बहुत अधिक बदलाव नहीं आया है। आज भी उसकी गलतियों को माफ नहीं किया जाता । स्त्री के महत्व को समझना होगा क्योंकि पुरुष सत्ता के प्रभुत्व में स्त्री का सबसे बड़ा योगदान रहा है। कहा जाता है हर सफल व्यक्ति के पीछे किसी ना किसी स्त्री का हाथ रहा है। उसने ना कभी किसी पुरुष को चुनौती दी और ना उसके महत्व को नकारा । यदि पुरुष शक्तिशाली बन सका तो स्त्री ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी । कभी बेटी के रूप में, कभी पत्नी बन कर और कभी मां बन कर ।
आज कुछ सीमा तक स्त्री की दुनिया बदली हुई है। आज शिक्षा को हथियार बना कर वह आर्थिक रुप से मजबूत हुई है। बस उसे बढ़ना है पुरुष का सहयोगी बन कर । उसे निर्माण करना है एक मर्यादित और संस्कार वाले समाज का । उसे बनना है आत्मविश्वासी । एक आत्म विश्वासी महिला गैर जिम्मेदार नहीं हो सकती । उसे अपनी मर्यादा में रह कर हिम्मत से अगली पीढ़ी का निर्माण करना है।
स्व रचित
डॉ.मधु आंधीवाल एड.
अलीगढ़
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