किस कविता में कौनसा ख्याल..
उस कविता में वो वाली बात..
इस कविता में ये मन की बात..
वो कब लिखी..
कैसे लिखी..
तब कैसे थे हालात..
तुम्हारे अंतर्द्वंद्व..
तुम्हारे फिकर..
और यहां तक कि वो बेफिकर होना भी ,
सब कुछ तो पता है !!
और एक तुम हो
जरा भी काम करना पड़ जाए न
कुछ नहीं मिलता,
अच्छा, जरा बताओ तो
पिछली दफा जब नाराज हुई थी तुमसे..
मैने क्या लिखा था तब..
तुमने तो मनाया भी नहीं था न..है न !!
इसीलिए बिल्कुल चुनकर "नाम" रखा है तुम्हारा ,
सही में, तुम्हें कुछ नहीं पता !!
मेरे पीछे कैसे करोगे.. कभी सोचा भी है,
कौनसी बारिश.. किस बादल में रखी है
इसका पता समुंदर को होना ही चाहिए !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ , उत्तर प्रदेश