दे, अनुकूल स्वच्छ विहान।
धरा-जीवन जल का पर्याय,
कबीर-साखी में जल-प्राण।
मान दे जिसे काव्य,विज्ञान,
झुक,चंद्र दे जलद-सम्मान ।
जल-प्रक्षालन है, शुद्धि - मंत्र,
अवनि पर आनंद शांति -तंत्र।
न केवल मनु,हर जीव मन,
हर तन की संतान का त्राण।
प्यास मिटे,हो आत्म-शोधन।
जग-परिवार की व्यथा करुण,
करे वागीश में भाव-संचारण।
भूजल,अदृश्य होगा गतिमान।
संयुक्त राष्ट्र-विषय,जल-पालन,
जल-चक्र से ही प्रकृति-संतुलन।
शुद्ध जल-संचय तकनीक-ज्ञान,
से,सीमांत-समूह की ध्वनि-श्रवण।
@ मीरा भारती,
पुणे,महाराष्ट्र।