हृदय में छायों अलग ही उल्लास
अनुपम छटा निराली प्रकृति की
कूक कर गाएं कोयल मधुर गान
आम्र विटप पर सजी आम्रमंजरी
कुसुम उपरि गूंजती भौरों की मंडली
देती हैं संदेश अनुराग और प्रीत का
समभाव से सबको देखती यह प्रकृति
रंगों में रंग जाते जब हर नर नारी
भेदभाव मिटता जब चलती पिचकारी
लाल हरे नीले पीले रंग बिरंगे दिखते
ढोल मंजीरे मृदंग नगाड़े खूब बजते
सब साम्प्रदायिकता से ऊपर उठकर
फागुन में खेलते जब रास रंग की होली
प्रेम, सद्भाव की गंगा बहती फागुन में
संदेश फागुन का खुशियां बिखरे जीवन में
स्वरचित एवं मौलिक
अलका शर्मा, शामली, उत्तर प्रदेश