ऐसी स्त्री

उसने लिखा एक 

ऐसी स्त्री को,

जिसका श्रंगार 

उसका वजूद हैं

जिसने बनाया खुद का 

एक अस्तिव,

जिसने माथे पे 

पड़ी शिकन को 

मिटा दिया अपने सँघर्ष से,

जिसने अपने 

बुरे समय में भी 

खुद को गिरने नहीं दिया,

जिसने तोड़ डाली 

समाज की रूढ़िया 

जो करती थी 

स्त्री को कमजोर,

उसे नहीं मिला था 

किसी बाहरी का साथ ल,

उसे नहीं बंधवाया 

किसी ने ढाढस, 

उसने खुद को 

मजबूती दी हैं ,

एक स्त्री जब 

सँघर्ष की आग में 

तप कर पुनः मजबूती से 

खड़ी होती हैं ना 

उस स्त्री से प्रेम करने का 

सौभाग्य बहुत कम 

पुरुषों को मिलता हैं।


डिम्पल राकेश तिवारी

अयोध्या-उत्तर प्रदेश