उससे भी वृहत तेरे हैं काम
करती हर वक्त निर्माण
तेरे हाथों होता उत्थान
बच्चे की प्रथम पाठशाला
तेरा घर तेरा शिवाला
कभी बन जाती अन्नपूर्णा
तो कभी लक्ष्मी स्वरूपा
एक हाथ कड़ाही कलछुल
दूजे से बच्चे को पाला
पेड़ पौधों की करे हिफाजत
पशु पक्षी को खिलाती निवाला
हे ईश्वर स्त्री स्वरूप में
तूने यह क्या रच डाला
कभी बन जाती दुर्गा काली
तो कभी राधा मीरा
तुझ में है अपार शक्ति
क्या तू कभी नहीं थकती
बरसाती सर्वथा प्यार
तेरे हिस्से में नहीं इतवार
दिखता कभी भी ना थकान
चेहरे पर रहता सदैव मुस्कान
स्त्री तू सचमुच महान|
सविता सिंह मीरा