बचाए रखती है कुछ "सिक्के"
पुरानी गुल्लक में ,
पता नहीं कब से..
कभी खोलती भी नहीं..
कभी-कभार देखकर हो जाती है संतुष्ट !!
वह स्त्री..
बचाए रखती है कुछ "पल"
फुर्सत के ,
सहेजती ही रहती है..
पर, फुर्सत कहां मिलती है
उन्हें एक बार भी जीने की !!
वह स्त्री..
बचाए रखती है कुछ "स्पर्श"
अनछुए से ,
महसूस करती रहती है..
कभी छू ही नहीं पाती
अंत तक !!
वह स्त्री..
झाड़ती-बुहारती है सब जगह
सजाती है करीने से
एक-एक कोना ,
सहजे रखती है कुछ "जगहें"
आगंतुकों के लिए ,
पर, तलाशती रहती है "एक कोना"
अपने लिए
अपने ही घर में
अंत तक !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ , उत्तर प्रदेश