पड़ोसियों की देखा-देखी यह पूछना कि प्वाइंट नाइन परसेंट कहां कटा आया? अक्ल कहाँ भूंसा चरने गई थी, कहना संवेदनशील माता-पिता होने का प्रतीक है। और तो और बगल वाले बच्चों से जब तक तुलना न कर दो तब तक हलक के नीचे निवाला उतरने का नाम नहीं लेता। पड़ोसी भी मानो पड़ोसी न हुए हमारे डायटिशियन हो गए। बच्चों के अंक में प्रश्नों के उत्तर छिपे हों या न हों लेकिन माता-पिता की नाम अवश्य छिपी होती है। जितने अंक कम होंगे नाक उतनी ही अधिक कटेगी। दोनों का ग्राफ विरोधाभासी स्वभाव का अधीन होता है।
यही कारण है कि बच्चे सदा स्कूल बंद रहने की इच्छा व्यक्त करते हैं। नो एग्जाम नो टेंशन। उनकी ख्वाहिश है कि चुनावों की तरह इम्तिहान भी पांच साल बाद ही होने चाहिए। डॉक्टरेट की डिग्री भी सब्जी मंडी में सब्जियों की तरह मिल जाएँ तो कितना अच्छा होता। न पढऩे का झंझट और न लिखने की किरकिरी। ऐसे ही लोगों के लिए रेल से सफर करने पर गुप्त रोग विज्ञापनों के बाद एक झटके में डिग्री पास। बिना दसवीं के डिग्री। या यूँ कहें कि बिना पढ़ाई के डिग्री के टुकड़े। इन्हीं के चलते देश में घोड़े और गधों की गिनती रोक दी गई है। चूंकि इंसान कहलाने वाले घोड़े बनने के चक्कर में गधे बनते जा रहे हैं। और जो घोड़े हैं वे गधों की चिंता में न इधर के न उधर हुए हैं। खच्चर से लगने लगे हैं।
परीक्षा पे चर्चा के बाद विद्यार्थियों में सदा आशाएं मजबूत होती हैं। अब वह दिन दूर नहीं जब बिना पेपर दिए ही बच्चे घर बैठे ही इंजीनियर या डाक्टर बन जाएंगे। ऐसा ही सुखद वातावरण रहा तो आई .ए. एस के पद भी घर घर पहुंचा दिए जाएंगे। वर्क फ्राम होम के बाद डिग्री और नौकरी एट युअर होम। सबसे बड़ा सुकून तो परीक्षार्थियों को यह मिल रहा है कि पर्चियाँ बनाने का झंझट अब खत्म होता जा रहा है। कोरोना ने पर्चियाँ छुपाने की के लिए गुप्त स्थानों को ढूंढने की टेंशन से निजात दिलाया है। नकल के लिए ब्लू टुथ के लिए नेटवर्क का टंटा खत्म। अभिभावकों को एक ही डॉयलाग- बेटा पढ़ लो ....पढ़ लो... रटने से निजात मिली। अब पढ़ो न पढ़ो सब मेरिट में पास। गधे घोड़े सब खाएं च्यवनप्राश। प्राईवेट इंस्टीच्यूट जो अखबारों में अपने यहां पढ़ने वाले आठवीं क्लास के बच्चों के फोटो और अंकों सहित बड़े बड़े विज्ञापन देते नहीं थकते थे और हमारे यहां एडमिशन करवाओ का लालच देते थे, उनका धंधा चौपट हो गया, अखबारों को धक्का लगा। सच देखा जाए तो जीवन हर कदम पर परीक्षा लेती है। पेपर लीक करवाने वालों का भी फुलटाइम धंधा चौपट। ऑन लाइन पेपर से पेपर की बचत। मोबाइल फोनों, टैब्स, लैपटॉप की बिक्री में सोने की तरह उछाल यानी इम्तिहान न हों तो हर रोज, परीक्षार्थियों के दिलों में होली दिवाली जैसी खुशी का एहसास...! काश इसी तरह बिना परीक्षा के पास होने का सुख जीवन भर बना रहता।
डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त, मो. नं. 73 8657 8657