मन इतना प्रेममय हो जाय

मन  इतना  प्रेममय  हो  जाय ।

अवगुणों   की    तरंग   थपेड़े ,

शांत   आनन्दमय   हो   जाय ।


प्रतिष्ठा  की  चाह  से  ज्यादा,

हिय, रम्य वाणी से भर जाय ।

देह का रोम - रोम खिल उठे,

मन  इतना  प्रेममय हो जाय ।


कर्तव्य   कोई   शेष   न  रहे,

इतनी  अंखड  नेह  हो जाय ।

दुष्टों  की  बढ़ती  छाया  भी,

बारम्बार  वंदन   कर   जाय ।


गहरी   तामस  का  अंहकार ,

घोर विकार ओझल हो जाय।

शत्रु पर उदार दया कर सके,

मन  इतना  प्रेममय हो जाय ।


✍️ज्योति नव्या श्री

रामगढ़ , झारखंड