कल पत्रकार आग बुझाते हुए शहीद हुए और आज आग लगाते हुए करोड़पति हो रहें । वक़्त इतना बदला की गणेश की खींची लकीर को पार ही क्या करना उधर देखना ही बंद कर दिया पत्रकारों ने। भगत सिंह को गणेश शंकर ने ही अख़बार में लिखने और अपने पास रुकने की जगह दी थी । वह एक धुरी थे,जिसके टूटते ही,उस वक़्त कितना कुछ बिखर गया था ।
कानपुर में हिन्दू-मुस्लिम दंगो को रोकने के लिए आज ही तो शहीद हुए थे गणेश शंकर । मैं हमेशा सोचती हूँ,वह कौन सा दिल होगा जो बेतहाशा पगलाई भीड़ के सामने शांति का मंत्र लेकर खड़ा हो जाए । अभी साल भर पहले हरयाणा में एक घर मे कुछ लोग लाठी डंडो से तांडव मचाते हैं, सारे पड़ोसी खड़े तमाशा देखते हैं, कुछ वीडियो बनाते हैं । तब लगता है कि क्या इन्होंने कभी गणेश शंकर को जाना भी होगा,पढ़ा भी होगा । क्या इनमे गणेश की एक बूंद रक्त की भी न होगी,जो यह तांडव करती भीड़ से भी ज़्यादा होकर भेड़ बने खड़े रहे । एक क्या रोज़ हज़ार घटनाएँ घट रहीं,जहां रह रह कर गणेश शंकर की ज़रूरत सामने आ रही,मगर देखो,अब वह नही हैं और ज़माने में किस क़दर बेचैनी है ।
गणेश शंकर विद्यार्थी को हर वह याद करे,जो शांति के लिए मर भी सकता हो,जो हिंसा की आग में झुलसते लोगों को बचा भी सकता हो । मैं भी बस एक ही प्रार्थना करती हूँ,की जब इतना दुश्वार माहौल का सामना हो,जब पगलाई भीड़ किसी को मारने को उठ खड़ी हुई हो और मैं वहाँ होऊँ, तो ईश्वर मुझमे गणेश शंकर की आत्मा की शक्ति देना । मैं मर जाऊँगी मगर अंत तक जूझूँगी । बस इस प्रण में कमज़ोर न होऊँ,यही प्रार्थना है ।
एक अंतिम बात हर सिद्धान्त,हर नियम,हर उसूल का एक वक्त आता है । इम्तेहान का वक़्त, जो उससे गुज़रा नही,वह खुद कह सकता है, ज़माना मगर उसे नही मानता । ज़माना परीक्षा सेगुज़रने के बाद परिणाम को ही सम्मान देता है । भगत सिंह देश की आज़ादी के लिए फांसी की परीक्षा से गुज़रे और शहादत के परिणाम तक पहुँचे, जिसपर सब झुक गए । गणेश शंकर दंगो को रोकने खुद बिना हथियार का सहारा लिए,भीड़ में उतर गए,परीक्षा के लिए जूझ गए,परिणाम उनकी शहादत और दंगो का रुक जाना रहा । दुनिया ने इस परिणाम पर सर झुका लिया ।
दोस्त खुद को परीक्षा के लिए तैयार करो,परिणाम पर ही ज़माना झुकेगा ।नफरत को मिटाने के लिए मिट जाओ । गणेश शंकर को खूब पढ़ो, यही कठिन परिस्थितियों से जूझने की हिम्मत और रास्ता देंगे...आज शहादत पर और इतने विपरीत हालात पर हर चार घर के बाद गणेश की ज़रूरत है जबकि चार देश के बाद भी कोई गणेश नही है ।रास्ते दो हैं एक दंगाई का और दंगाई को रोकने का,खुद तय करना कि किस रास्ते पर चलना है । गणेश शंकर को नमन क्या कहें,शहीद तो ज़िन्दा ही रहते हैं । हम सबमे तब तक गणेश ज़िन्दा हैं जब तक हम नफरत के खिलाफ हैं... हम सब गणेश शंकर के रास्ते पर हैं, जहां न रुकना है, न थकना है, बस आग बुझाते हुए किसी रोज़ बुझ जाना है...