हासिल कुछ न हुआ ग़मज़दा ये कहानी हुई।
चाहत पर ऐतबार जो किया,उनकी मनमानी हुई,
ला हासिल की हसरत में बेज़ार,दर्द निशानी हुई।
इश्क़-ए-हक़ीक़ी का तलबगार था ये दिल,
अश्क़ ही अश्क़ मिले न खुशियां आसमानी हुई।
उनकी दिल्लगी की आदत को प्यार समझ बैठे,
नापाक इरादे थे,चाहत न कभी रूहानी हुई।
दिल-ए-मुज़्तरिब को उनका ही इंतज़ार है रीमा,
बा-यकीं उनको न कभी इश्क़ की रवानी हुई।
रीमा सिन्हा
लखनऊ-उत्तर प्रदेश