एक बार तो भटकेंगें जरूर
इन घने जंगलों में ,
कि नहीं होगा जहां शहरी कोलाहल
न ही सीमाएं जीवन की !!
सुनों ,
एक बार तो उड़ना है बनकर पतंग
पहुंचना है सुदूर अंतरिक्ष में ,
ले आएंगें थोड़ी सी "उड़ान"
कल्पनाओं के लिए !!
सुनों ,
एक बार तो वही "शब्द" बनें हम
अन्यत्र कहीं लिखा ही नहीं ,
बिना कहे सुन लेना तुम
और समझ लूंगी मैं
एहसास से ही !!
सुनों ,
एक बार तो जाएंगे वहां
जहां गये ही नहीं ,
जीवन है ही कितना
कि अब इंतजार होता नहीं !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश