प्रकृति का नव उल्लास है ये,
है धरा स्वयं करती श्रृंगार,
ऋतुओं का हर्षोल्लास है ये ।
दिनकर दिन दिन दैदिप्त हुआ,
रजनीश निशा संग लिप्त हुआ,
खेले पछुआ संग पुरवाई,
जनमानस भाव विभुक्त हुआ।
जग नभ खग बहु इठलाते हैं,
मृदु राग रागिनी गाते हैं,
पिऊ कोकिल नित नव भर उड़ान,
सुर कंठ मृदंग बजाते हैं ।
सरसों सर सर सरसाई है
कुसुमित उपवन तरुणाई है,
ओढ़ा पीतांबर धरती ने,
आलिंगन कर हर्षाई है।
ऋतुराज करे स्वागत तेरा,
चला चन्द्र पंच पद आगे है,
मिल उत्सव ऋतु बसंत गाएं,
आया पावन मधुमास है ये ।
महिमा तिवारी,प्रा0वि0-पोखरभिंडा
नवीनरामपुर कारखाना-देवरिया