मंगलमय रुत बसंत लाई ।
सत्यपरायण पीत रंग से,
धीर वंसुधरा खिलखिलाई ।
दिव्य आभूषण से विभूषित,
विदुषियों की जनयत्री आई।
कमललोचनी तपस्विनी की,
दयानत रोम रोम समाई ।
करुणामय दयालु की देवी,
अनुपम वेदादि रूप दिखाई।
दिलोदिमाग से अविद्या राग,
अमर्ष पातक रोष मिटाई ।
ज्योति नव्या श्री
रामगढ़, झारखंड