पलकों की छांव में,
जहां हर एक राज
जानती फिर भी मुख
से न कहती
एक आँनोखी दुनियाँ थी
माँ तेरी पलको में
कभी गुस्सा का नज़ारा
कभी ख़ुशी की सीमा नहीं
आज दुनियां सिर्फ़ स्टैटस
में बताती है
सैफ्टी कहाँ है
माँ तेरी पलकों जैसी
छांव दुनियाँ में कही नहीं
माँ दिल का हाल पलकों से
बताती है
अंदर बाहर का मेरा हाल
आवाज़ से बतलाती है।
माँ आज फ़िर छुपा लो
पलकों में ये दुनियाँ अब
जीने नहीं देती है।
प्रतिभा जैन
टीकमगढ़ मध्यप्रदेश