नारी

नारी जो नित बहती

अविरल धारा सी

प्यारी सी मुस्कान लिए

नित पिघलती पारा सी।

बाहर से नाजुक पर

अंदर से मजबूत

सिर पर सबका

भार उठाती वसुधा सी।

नैनों में है गर्व लिए

निर्भरता नारीत्व का

आत्मविश्वास है इतना कि 

अडिग पर्वत श्रंखला सी।

श्रद्धा स्नेह ममता 

विश्वास की प्रतिमूर्ति

दूसरों को तृप्त कर

खुद संतुष्ट हो जाती।

अच्छी बुरी हर 

परिस्थिति संभाल लेती

अपनों की चिंता में

जलती नित बाती सी।

कोमल कर में उठा 

रखी सबकी जिम्मेदारी

कभी प्रिया कभी सखी कभी   

जननी या प्रेरणा बन जाती।

अपना घर अपना परिवार

छोटा सा उसका संसार 

कभी ना मानती किसी से हार

सदा लुटाती सबको प्यार।


वंदना यादव,वरिष्ठ कवित्री एवं 

शिक्षिका,चित्रकूट-उत्तर प्रदेश