बेटा चल दिया शहर को।
कब आएगा,
बेटा कब आएगा?
यह सोच सोच कर बीती राते,
कैसे भूले सालों भर की बातें,
अकेलापन अब अच्छा न लगे,
अपना बेटा भी अब सच्चा न लगे,
क्यों गया,
बेटा क्यों गया?
बेचैनी सी होती है मन में,
किसे कहूं जाकर भी मैं,
बड़ा किया जिसे पाल पोस कर,
छोड़ दिया उसने बोझ समझकर।
क्या मांगा,
बेटा क्या मांगा?
अफसोस होता है आज भी दिल में,
मांगा नहीं था कभी कुछ हमने,
समझा था सिर्फ बेटा हमने,
गया "जोरू का गुलाम"बनने।
कैसे भूलू,
बेटा कैसे भूलू?
कैसे भूल जाए हम तुम्हें,
हमारा खून ही तो है तुझ में,
तुम्हें दिए थे हमने संस्कार ,
पर तुमने किया उनका बहिष्कार।
क्यों गया,
बेटा क्यों गया?
एक आस सी लगी रहती थी मन में,
गया है बेटा पढ़ने लंदन में,
सोचा, मिलने आएगा वह हमें,
पर मार डाला उसने ,जीते जी ही हमें।
बस अब क्या कहूं,
अब क्या कहूं?
क्या रह गया है कहने को,
बस दुआ है रब से मेरी,
मिले ना ऐसा बेटा किसी को।
मौलिक व स्वरचित रचना
आरती सुथार
निवासी- उसरवास तह-खमनोर जिला-राजसमंद,राजस्थान