रावण दहन

 दहन रावण से अब काम नही चलेगा जलान होगा मन के रावण को आज ।

 समाज के इस विकृत मानसिकता को  जड़ से ही खत्म करना होगा आज।।


 रावण ने तो सीता हरा था उसके पीछे उसका प्रतिशोध ।

 यहाँ तो रावण सीता हरता जिसका न कोइ प्रतिशोध।। 


 दस सिर वाले रावण को अपने ऊपर था अभिमान ।

 यहां तो रावण नीच पतित है इसका ना कोई मान।।


 मर्यादा देखो उस रावण का वर्षों तक सीता रही पवित्र ।

 इस वहसी रावण को देखो रिस्ते भी करते अपवित्र।। 


 दोष यहाँ है बीजों का उसके तन में ब्रम्हा का खून ।

 इस वहसी के खून में देखो न जाने मिले हैं कितने खून।। 


 पशुता का यह परिभाषा इसके अंदर न आत्म ज्ञान ।

पशुवत रहता आचरण इसका सामाजिकता का न इसको  ज्ञान।।  


हवस चढ़ा इस वहसी पर हवस के मद में है अंधा ।

 ज्ञान शून्य यह मानव बस  पशुवत आचरण है करता।। 


 नरपिशाच बने यह मानुष मानव नाम कलंक है ।

इसकी छाया भी पापी है यह मानव नाम कलंक है।। 


 दुत्कार मिले इसे समाज से  समाज में कोई जगह न हो ।

इसके कुकृत्यों का सजा इसका चौराहे पर अंत हो।। 


 फिर दुःसाहस न कर पाए पापी  इसको मिले ऐसी सजा ।

पाप घड़ा फोड़कर इसका  मिले इसे इसके पापों की सजा।। 


 नारी से बस एक निवेदन  मत झेलो इसका अत्याचार ।

इसके पापों का विरोध कर  तुम दे दो इसको तत्काल सजा।।


 आत्म सम्मान के इस जंग में  संग खड़ा तुम्हारा समाज ।

त्रिशूल उठा अब वार करो खड़ा मिलेगा  तुम्हारा समाज।। 


 शक्ति रूप तुम नारी हो   तुममे शक्ति    है अपार ।

अब इस कलयुगी रावण का  संघार करना तुमको खुद ही आप।।। 


श्री कमलेश झा नगरपारा भागलपुर बिहार