खुद समझाने बैठें हैं

जाने क्या खुद समझाने बैठें हैं

फिर उनसे हम धोका खाने बैठे हैं

क्या फिर से हो गई कोई गलती हमसे

लोग सुब्ह हमें क्यों कर समझाने बैठें हैं

इतने शतिर है ये झूठें लोग कै अब

आईने को भी झुठलाने बैठे हैं

सब कुछ अपना डूब गया इक लम्हे में

जाने किसके साथ को पाने बैठे हैं

कर मत उनसे बात कोई होशियारी

की साथ में तेरे जो दीवाने बैठे हैं

अभिषेक जैन

पथरिया दमोह मध्यप्रदेश