पिता ईश्वर रूप हैं, साक्षात साकार ।
धन्य जिन्हें मिलता यहाँ, मात पिता का प्यार ।
जीवन अपना धन्य कर, छू कर उनके पाँव ।
पिता चिलकती धूप में, हैं तरुवर की छाँव ।
हँसते ही देखा सदा, देखा नहीं उदास ।
सब कुछ मेरे पास था, जब तक थे वे पास ।
मन के अंदर की व्यथा, आई नहीं जुबान ।
पीड़ा कितनी भी रही, पर मुख में मुस्कान ।
पिता अगर हैं पास में, सब सपने साकार ।
उनकी आशीषें सदा, है अनुपम उपहार ।
सिर पर जिनके बोझ है, चेहरे पर मुस्कान ।
यही पिता की लो समझ, छोटी सी पहचान ।
सदा पिता के शुभ चरण, झुके हमारा माथ ।
मेरे सिर पर हो सदा, आशीषों का हाथ ।
श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
व्याख्याता-हिन्दी
लहार, भिण्ड, म०प्र०