रात
रोज आती है
चैन की दस्तक लेकर।
रात
रोज जाती है
उम्मीद की
नई ऊर्जा देकर।
रात
इस आने जाने में ही
छोड़ जाती है
कुछ खट्टी मीठी यांदे
कुछ कभी न भूलने वाले
ख़ुशी के क्षण
कुछ न कहे जाने वाले
अंतरंग पल।
रात
आमतौर पर
सोने के लिए होती है
कभी कभी
किसी की बाहों पर
सिर रखकर
हंसने या
रोने के लिए
होती है।
इन रातों में ही
एक रात ऐसी आयी
जिसने कहा
अब खेलने-खाने
हंसने - रोने
के लिए भी
उसकी अनुमति
जरूरी है।
इस रात के
एक फैसले के
आधार पर
उन सभी लोगों को
जेल में डाल दिया गया
जो मानते थे
हर आदमी को
हंसने और रोने का अधिकार
जन्म से प्राप्त है
उसे केवल
मृत्यु छीन सकती है।
रात के इस कर्म से
केवल तारे नहीं
सूरज और चांद भी
घबरा गए
बड़े बड़े प्रकाश पुंज
सकते में आ गए।
और कुछ बताने लगे
यह काली रात ही
अनुशासन पर्व है।
जगह जगह
रात के स्वागत में
बाजे बजने लगे
अखबार छपने लगे
कि रात के
इस निर्णय से
देश बदल रहा है
चारो तरफ
छा जाने को
विकास
मचल रहा है।
इस बदले
परिवेश को
रात ने समझा
हम दिलों में
छा गए हैं
इसे लेकर
उस मोड़ पर
आ गए हैं
कि अपने काली रात के
फैसले पर भी
लोगों का
अनुमोदन ले सकते हैं।
और रात उतर गयी
चुनाव के
मैदान में
जवाब में
लोगों ने
काली रात
की रानी को
इतिहास के
उस कूड़े दान में
डाल दिया
जहां से
बाहर निकलना
मुश्किल था।
इसे पाकर
वीरों में
कौन श्रेष्ठ
कौन सर्वश्रेष्ठ की
जंग शुरू हो गयी
और काली रात
फिर वापस आ गयी
मीठी रात बनकर।
एक दिन
इस मीठी रात को भी
आतंक खा गया
रात की जगह
रात का बेटा छा गया
लेकिन आतंक ने
उसे भी नहीं छोड़ा।
इसके बाद
कई रातें
आईं
और गईं
कुछ पुरानी थीं
कुछ नई।
सबकी अपनी अपनी
भाषा थी
अपनी अपनी
परिभाषा
कि वह
गई रात से
अच्छी है
सुंदर और सच्ची है।
इन रातों में से
एक रात
इस देश के
दीवानों को
कुछ अधिक
भा गयी
इसे लेकर
यह रात
इतनी उतरा गयी है
कि उसे भी अब
वह हर कदम
भाने लगे हैं
जो रात को
भयानक काली रात बनाते हैं।
इसलिए इस देश के
हर नागरिक का
कर्तव्य है कि
वह रात को
भयानक काली रात
बनाने वाले
बोध के खिलाफ
चीखे
चिल्लाए
सबको बतलाए
कि रात
अब भयानक काली रात
हो चुकी है
नहीं यकीन है तो
नदियों में
उतराई लाशों को देख लो।
दोनों काली रातों में
अन्तर केवल इतना है
वह केवल अनुशासन पर्व थी
यह मोक्ष भी
बांट रही है।
- धीरु भाई