संतापों से झुलसे तन को,
सरस छुअन की अनुभूति दे
सहलाओ बहलाओ न।।
जीवन की सूखी नदिया को
खुशियों की ऊजड़ बगिया को,
तुम अलि संग रसाल मंजरी
सरसाओ हरषाओ न।।
झूम झूम दीवाना बादल
सींच रहा अवनी को पागल
तिल तिल तपती मरूभूमि पर
अमृतरस बरसाओ न।।
मौन पड़े मन के नादों को
स्वांसों के बिखरे तारों को
बन मिजराब गुँजा मन वीणा
काफी राग सुनाओ न।।
देवयानी भारद्वाज
उसायनी फीरोजाबाद