॥ वक्त ॥

वक्त से समझौता कर लो

वक्त किसी की नहीं सुनता

अपने ढंग से चलता है यह

अपने ढंग से है कहता


वक्त से समझौता कर लो

वक्त किसी का नहीं होता

अर्श से फर्श पर बिठा देता

फर्श से अर्श पे है ले जाता


वक्त से समझौता कर लो

यह किसी के लिये नहीं रूकता

राजा को भी रंक बना देता

रंक भी राजा बन जाता


वक्त से समझौता कर लो

वक्त किसी के लिये नहीं ठहरता

वक्त के संग संग बहते जाओ

मंजिल अवश्य ही है मिलता


वक्त से समझौता कर लो

अवसर वक्त जरूर देता

वक्त की नजाकत पहचानों

वक्त ही मुकद्दर है लिखता


वक्त से समझौता कर लो

वक्त की भृकुटी जब चढ़ जाता

पकी हुई मछली भग जाती

गंगू भी राजा बन जाता।


उदय किशोर साह

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