मसअले का हल ज़रूरी था,
उनको वादों का पाश न हो,
मगर मेरा मिलना ज़रूरी था,
दिल की अदालतों के फ़ैसले
बड़े ,ग़मगीन हुआ करते हैं
इल्ज़ामों का जवाब मुझको
देना दोस्तों बहुत ज़रूरी था,
उसने तो बहुत कुछ कह दिया
इल्ज़ामों की किताब भेजकर,
बात साफ़ साफ़ हो, इसलिए
अपना रुबरू होना ज़रूरी था,
इश्क़ में फ़ासले , फ़ासले नहीं,
होते,इतने क़रीब आ गये थे,
हम कि अब तो दूर होना भी
सच मानिए बहूत ज़रूरी था,
आंखों में तेरा चहरा ,और दूर
साहिल पर तेरा होना,तन्हा ,
तूफान से कश्ती का लड़ना
बहुत ज़रूरी और ज़रूरी था,
तमाशा मौत का हर पल हर घड़ी
होता ही रहता है और रहेगा,
हम को तो मगर आंखों में तेरी ही
डूब कर मारना बहुत ज़रूरी था,
दास्ताने मुहब्बत इस क़लम से
मुश्ताक़ बयां क्यों कर होती,
लहू आंखों से बन कर अश्क,
दामन पर गिरना बहुत ज़रूरी था,
डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह
सहज़ हरदा
मध्यप्रदेश