मेरे मर जाने से भारत

मेरे मर जाने से भारत

खोया गौरव पाए तो,

मैं कबिरा के दरवाजे पर

मर जाने को सहमत हूँ।

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लोकनायक जयप्रकाश नारायण के अनुयाई, दैनिक युगजागरण के ध्वजवाहक श्री अनिल त्रिपाठी बहादुर और जुझारू पत्रकार तो हैं ही, एक संवेदनशील जागरूक नागरिक भी हैं।

उनके साथ खड़ा है सद्भाव, समरसता  और समतावादी व्यवस्था की चाह रखने वाला प्रबुद्ध मित्रों का एक बड़ा वर्ग।

ईश्वर की कृपा से मुझे डराने की कोशिशों के खिलाफ ये लोग मजबूती से खड़े हैं। 

ऐसे श्री अनिल त्रिपाठी और उनके सभी मित्रों को अर्पित है-

नफरत के हाथों से मरकर,

घर जाने को सहमत हूँ

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मैं नफरत के दावानल में

जर जाने को सहमत हूँ।

मैं आमी के ठहरे जल में

तर जाने को सहमत हूँ।

मेरे मर जाने से भारत 

खोया गौरव पाए तो,

मैं कबिरा के दरवाजे पर

मर जाने को सहमत हूँ।

अरसठ का होने वाला हूँ 

चलना फिरना मुश्किल है,

नफरत के हाथों से मरकर,

घर जाने को सहमत हूँ।

जाने धरती किसके बल तूँ,

एक कलम को रोक रहा,

इसीलिए तेरी धमकी से 

डर जाने को सहमत हूँ।

नहीं पता है तूँ साधू का 

दुश्मन है या साथी है,

फिर भी तेरे चाकू पर सिर

धर जाने को सहमत हूँ।

नहीं जरूरत है बागों को,

इसका कोई गिला नहीं,

लेकिन अगर जरूरत है तो

फर जाने को सहमत हूँ।

नीलगगन ही हम जैसों का

असली ठौर ठिकाना है,

इसीलिए अब इस डाली से,

झर जाने को सहमत हूँ।

इस धमकी या उस धमकी से

कलम नहीं रुकने वाली,

शेष बचा जीवन भी अर्पित,

कर जाने को सहमत हूँ।


धीरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव

सम्पादक

राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर सन्सद में दो टूक

लोकबन्धु राजनारायण विचार पथ एक

अभी उम्मीद ज़िन्दा है