ये कैसी है सरकारी,
मानसिकता की खुमारी।
किसको दौड़ा रही है,
ये भूख की बीमारी।
सभी लगे है इस होड़ में,
पहले आयेगा किसकी बारी।
पीछा नही छोड़ रही,
कैसी है ये बेरोजगारी।
कितने हुनरमंद घूम रहे,
तलाश में रोज़गारी।
आज सरकारी मानसिकता की,
चारो तरफ़ छाई लाचारी।
मिट्टी में चुना लगाकर,
सौदगिरी की काला बाजारी।
महँगाई भी सिर से ऊपर,
कौड़ी की किम्मत भी हजारी।
यहाँ हवा मुफ्त कहाँ,
बात करना भी पड़ रहा भारी।
कर्ज की बोझ से दबे लोग,
फिर भी समझ रहे सरकारी।
पानी से बिजली तक,
सफर बिंदास है जारी।
सरकारी संपत्ति अपना है,
नारा से सिस्टम भी हारी।
गाज हम सब पर गिरेगी,
आज मेरा तो कल तेरा है बारी।
कल तक पर्दे में निगाहें आज,
जमाने की दौर में आगे है नारी।
चल रहा सरकारी हुजूम,
जुगलबंदी कहीं फ़ौजदारी।
दुनिया के भीड़ में खड़ा है,
उसे पता नही दुनियादारी।
सरहद में ढेर थी नकामी,
दुश्मन को जवाबी करारी।
सिर कटता न शान जाये,
ओ खून में कहाँ था ग़द्दारी।
लूट पाट की सीमाओं पर,
जन मानस की बेकरारी।
रखो सरकारी मानसिकता की,
लगन भरोसा जिम्मेदारी।
दिव्यानंद पटेल
विद्युत नगर दर्री
कोरबा छत्तीसगढ़
सरकारी मानसिकता...!