एक गंदी नाली निकलती है
मैने कई वर्षों से
उसकी सफाई नहीं देखी है
वैसे शायद आप नहीं मानेंगे
मेरे मुहल्ले के छुटभईये नेताओं के लिए
उसकी महिमा अपरम्पार है
चुनावी मौसम में
उसकी तुरंत सफाई का वादा
जीत जाने के बाद
सफाई की परियोजना पर बहस
हार जाने के बाद
जीती हुई शख्सियत
को इसकी सफाई की चुनौती के लिए
खुले शब्दों में ललकारना
गाहे बगाहे भीड़ इकट्ठी कर
इसमें विलम्ब के लिए घंटों कोसना
आवाम को इसका मौका नहीं देने के लिए
बार बार उलाहना देना
थोड़े मे कहें तो
गंदी नाली सिर्फ कहने को गंदी है
कुछ लोग तो यहाँ तक कह्ते हैं कि
इसे गंदी नाली कहना
सौ फीसदी बेमानी है
और जो ऐसा कहा करते हैं
वे और कोई नहीं
बल्कि वे लोग हैं जिन्हेँ
तमाम प्रयासों के बावजूद
इससे किसी न किसी रुप में
जुड़ने का मौका नहीं मिला
अखबार नवीसों ने पुरजोर कोशिश की
पर अंजाम वही ढ़ाक के तीन पात
सरकारी अधिकारियों ने भी
हर सम्भव कोशिश कर ली
पर सियासती अन्दाज़ के सामने
हर प्रयास चारों खाने चीत
युवा संगठन भी अपना झन्डा लिये
अपनी डफली अपना राग वाली शैली में
बेवशी को अपना हथियार मान
न जाने कितने पहले से
आत्मसमर्पण की मुद्रा में
स्पष्ट नज़र आते हैं
महिला संगठनों ने भी
अपनी कामयाबी का परचम लहराते हुए
बाज दफ़ा घेरा बन्दी की है
पर शायद वही मिसरा
नक्कारखाने में तूती की आवाज़
हाँ,इन तमाम गतिविधियों को
पिछ्ले एक दशक से
नियमित देखने वाला मेरे मुहल्ले का
तथाकथित प्रगतिशील लेखक
सभी से बार बार एक ही बात कहता है
मेरे अजीजों थोड़ा इन्तेजार करो
मैं बहुत जल्दी ही इस गंदी नाली पर
एक डाक्यूमेन्ट्री फिल्म लिखूंगा
जिसे सारी दुनिया देखेगी
और करतल ध्वनि से
मेरा स्वागत करेगी
आप भी सोचिये कितनी नायाब है
मेरे मुहल्ले की गंदी नाली
राजेश कुमार सिन्हा
मुंबई