ख़ास दिन की जरूरत नही होती,
बस दो बेहतरीन दिल चाहिए होता।
जिसमें अगाध प्रेम हो,
अपने साथी के लिये।
शब्दों की जादूगरी औऱ,
आँखों में असीमित प्रेम,
यही होना आवश्यक है बाकी तो,
दुनिया के बनाएं ताने-बाने है।
प्रेम जब शब्दों में न बंध पाया,
प्रेम जब बंदिशों में न बंध पाया तो,
किसी ख़ास दिन में तो,
कतई न बंधने वाला है ये प्रेम।
प्रेम को अगर कोई बाँध सकता है तो,
वो है एक मात्र प्रेम।
तो स्वछंद हो प्रेम करिये,
उन्मुक्त हो प्रेम में पर फैला उड़िये,
रिक्त हो प्रेम के डुबइये और,
हो जाइये प्रेम में कृष्ण राधा,
मीरा शिव शिवा किसी दिन,
किसी पल,किसी शब्द,
किसी बन्धन से परे है प्रेम,
आनदं लीजिये।
डिम्पल राकेश तिवारी