न सुबह की चिंता, न रात की फिकर ,
हंसते खेलते कट जाएगी जिंदगी की डगर।
क्यों उठाए फिरते हो बोझ जिंदगी का ,
इस जिंदगी को कर दो प्रभु की नजर।
दीन हीन हो तुम भिखारी बन कर रहो ,
बनी रहेगी ऊपर वाले की तुम पर महर।
न कर घमंड इस धन दौलत का प्यारे,
वक्त बुरा हो तो अमृत भी लगता है जहर।
सब कुछ अर्पण कर दे, प्रभु के चरणों में ,
आराम से कटेगा तेरी जिंदगी का सफर।
इस तन और रूप का मोह क्या करना ,
कुछ ही पल होती है इसकी कदर।
खुद को प्रेम रस में डूबा कर देख "नीरज",
मिलेगा पूर्णानंद प्रभु नहीं रखेंगे कोई कसर।
"नीरज सिंह "
टनकपुर