हाट खाली कर हृदय का,
बेच दो तुम वेदना को।
अपने आंचल में बटोरे,
नयन के अमूल्य मोती।
इस भयानक से तिमिर में,
बनके निखरो एक ज्योति।
जो दुखाती है हृदय को,
बेच दो उस चेतना को।
खिल रहे हैं कमल कितने,
क्यों तुम्हें वो पुष्प प्यारा।
जो रुलाता है नयन को,
हो नहीं सकता तुम्हारा।
रो रही है उर मे जो,
बेच दो उस संवेदना को।
प्रेम के धागे हैं कोमल,
बांध लो तुम प्रेम से वो।
भाव के हैं तार बिखरे,
जोड़ लो तुम नेह से वो।
जो दुखाए मन किसी का,
बेच दो उस कल्पना को।
हट खाली कर हृदय का,
बेच दो तुम वेदना को।
कामिनी मिश्रा