वसुंधरा अकुलाई है
मानव के कुकृत्यो से,मां वसुंधरा भी अकुलाई है।
मानव ने मानवता त्यागी,
तब यह विपदा आई है।
दया ,प्रेम करुणा सब भूला,
असुरों सा व्यवहार करें।
जीव जंतु तक कापे उससे,
उसका भी आहार करें।
धैर्य टूटा मां प्रकृति का भी,
रच कर वह पछताई है।
भीतर उसके छुपे विषाणु,
पर एक विषाणु ऐसा आया।
बना था नर यह महा विषाणु,
पर प्रभु की माया से घबराया।
छुपा हुआ निजी भवनों में अब,
बचने की गुहार लगाई है।
तन का भूखा, मन का भूखा,
धन के खातिर पाप करे हैं।
अब आई संकट की बेला,
तो रो -रोकर बिलाप करें हैं।
जब कर्मों का दंड मिल रहा,
देता रो रो दुहाई है।
मानव ने मानवता त्यागी,
तब यह विपदा आई है।
कामिनी मिश्रा