हरियाली का क़त्ल हर हाल में रोकना होगा।
सल्तनत मंजिल, हामिद रोड, निकट सिटी स्टेशन, लखनऊ की इंजिनियर हया फातिमा बिटिया नवाबजादा सैय्यद मासूम रज़ा, एडवोकेट ने कहा कि नवाबों के शहर लखनऊ को बागों के शहर से भी जाना जाता है। यह बड़े अफसोस कि बात है कि तरक्की के नाम पर रोज़ बरोज़ कहीं ना कहीं हरियाली का बेरहमी से कत्ल किया जा रहा है। सड़क के किनारे लगे दरखतों की छांव में लोग गर्मी के दिनों में पसीने सुखा कर राहत कि सांस महसूस करते हैं। राहगीर इन दरखतों के साएं में कुछ देर ठहर कर अपनी थकान मिटाया करते हैं। इंजीनियर हया फातिमा ने आगे कहा कि उन्हें यह जान कर बेहद अफसोस और तकलीफ भी हुआ कि सड़क चोड़ा करने के नाम पर हजारों दरखतों को काट दिया गया। इनमे से ज़्यादा तर दरखतों की उम्र 100 साल के करीब थी। नीम,बरगद, पीपल, जामुन और महुआ के हरे भरे पेड़ों को काटा जाना कहां तक सही है ? इंजीनियर हया फातिमा ने आगे कहा कि शहर लखनऊ में हरियाली का आलम यह था कि मई जून की सख्त गर्मी के दिनों में भी लोगों को तपिश का एहसास नहीं होता था। हवा चलने से सुकून मिलती थी और बारिश के दिनों में लोग भीगने से बच जाते थें। शाम के वक्त इन पेड़ों पर परिंदों वा चिड़ियों का बसेरा हुए करता था। अब यह परिंदे अपना घोसला कहां बनाएंगे? अफसोस की बात यह है कि बागों के इस शहर में इतने पुराने दरखतों का क़त्ल कर दिया गया और लोग खामोश तमाशाई बने रहें, उनके लबों पर जुंबिश भी नहीं आयी। हरे भरे पेड़ पौधे इंसानों के लिए कितने फायदेमंद है और लोगों को किस हद तक ऑक्सीजन पहुंचाते हैं, यह बात सोचने की है। तरक्की के नाम पर हरियाली का कत्ल किया जाना क्या सही है? हमें जागरूकता अभियान चला कर हरियाली को कटने से रोकना होगा। हरियाली पर्यावरण को दूषित होने से बचाता है और अच्छी सेहत के लिए हरियाली बेहद ज़रूरी है, यह बात हमें अच्छी तरह जान लेनी चाहिए।
इंजीनियर हया फातिमा
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