चिड़िया तेरा कहाँ ठिकाना
पंख झाड़ कर फुर्र रवाना
उठा घोसला, जोड़ हौसला
उड़ो जिधर है पानी दाना।
तेरी प्रकृति बस बंजारे सी
तेरी प्रवृति ज्यूँ टूटे तारे सी
तुझे हवा संग डुलते रहना
बहते रहना नदिया धारे सी।
डाली-डाली, पेड़ पेड़ पर
रहना-बसना गिनती क्षणभर
कोई न आश्रय, चिर-स्थायी
भाग्य लिखा नहीं पक्का घर।
इक वन से दूजे उपवन में
मीलों भटकन तेरे जीवन में
घूम घुमक्कड़, भूल भटककर
नभ तक जा, फिर आँगन में।
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अवतार सिंह, कवि तथा शिक्षक
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