सुन री मस्ती भरी ,साँवली-सी घटा !
छाई चेहरे पे कैसी ,ये अनुपम छटा ??
क्यों हुई बावली ,नभ में डोले प्रिये ??
राज का मुख से ,थोड़ा-सा घूँघट हटा ।।
सुन री मस्ती भरी........
क्या प्रिय से मिलन के,लिए तू सजी ??
दिल में लाखों उमंगें,लिए तू चली ??
कौन है वह बता ,बाट जोहे तेरी ??
राज से दिल के,थोड़ा-सा पर्दा हटा ।।
सुन री मस्ती भरी..........
यूँ समर्पण के अहसास ,से तू भरी !
चाल ऐसी है जैसे,कोई जलपरी !!
उर्वशी, मेनका अप्सराएँ सभी,
रूप तेरे से है मान सबका घटा ।।
सुन री मस्ती भरी.......
अर्थ जीवन का हाँ ,आज मुझको मिला ।
देव के काम आने का ,मौका मिला ।।
स्वयं के हित जो जिए ,तो भला क्या जिए ??
प्यास वसुधा की मेटूँ ,मैं स्वयं को मिटा ।।
प्यास वसुधा की.......
✍ मीनू कौशिक "तेजस्विनी"