हुंकार भरो


बहुत सह लिया अत्याचार ,
अब तुम दुर्गा का रूप धरो।
स्वयं की रक्षा की खातिर ,
 मन में चण्डी सा क्रोध भरो।।


बहुत रख लिया तुमने मौन,
अब तो तुम हुंकार भरो।
बहुत कर ली गुहार सबसे,
अब मत किसी से पुकार करो।।


चकला बेलन बहुत संभाले, 
अब तुम हाथों में तलवार धरो।
बहुत जी लिया डर डर कर,
अब दुष्टों का सर्वनाश डरो।।


तन मन तपाकर अपना तुम,
खुद को सख्त चट्टान करो।
तोड़े ना टूटे विश्वास तुम्हारा,
दिल में ऐसा तुम जोश भरो।।


यदि भूल गई  नारी शक्ति को,
रानी लक्ष्मी को याद करो।
बजा दो डंका अब जग में तुम,
अपने दुश्मन का संहार करो।।


पढ़ो लिखो जागरूक बनो,
दूसरों पर मत बोझ बनो।
होकर खड़े अपने पैरों पर,
जग में रोशन नाम करो।।


चीर दो सीना पापियों का,
धीरज ना तुम और धरो।
दिल में धधक रही जो ज्वाला,
मत उसको अब शांत करो।।


मिटा कर पाप जग से सारे,
 नव सृष्टि का निर्माण करो।
दया ,प्रेम और करूणा सेे,
मानवता का श्रृंगार करो।।


रचना
सपना ( स०अ०)
प्रा ०वि ० उजीतीपुर
भाग्यनगर 
जनपद औरैया