ग़ज़ल- 2 : कोई  बिरहन   गुनगुनाती   दर्द   का  नग़मा।


कोई  बिरहन   गुनगुनाती   दर्द   का  नग़मा।
मत   कहो  लोगों  उसे   कोई   नया  नग़मा।।


जी  को हल्का  कर वो लेती गुनगुना कर के।
और  जिसको  बोलते  तुम  ग़मज़दा नग़मा।।


रात  भर  किस्तों  में  अपने दर्द  को सहती।
मर्ज़  उसके ज़ख्म  का  हरदम बना नग़मा।।


ओढ़ती  चादर   बदन  पर  दर्द  से  लिपटी।
दर्द   का   साथी   बना उसका दवा नग़मा।।


चाहतों  की  चौखटों  पर  ख़्वाब  बिखरे हैं।
टूटे दिल  से  दे  रही   उनको  दुआ नग़मा।।


रात -दिन आँखों से बहती नीर हैं झर - झर।
हँसती आँखों  को  गई  कैसे  रुला नग़मा।।


आज़  सबसे  पूछती  है  अंजु  बस  इतना।
बावफ़ा  थी जब ,हुई  क्यों बेवफ़ा  नग़मा।।
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अंजु दास "गीतांजलि"
पति - श्री संजय कुमार दास
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